जब आपको अपने जीवन में कुछ बुरा दिखाई देता है तब आपको ईश्वर से कहना है- ‘सब तेरा है… सब सीधा है’। अर्थात ‘तुम्हें जो लगे अच्छा, वही मेरी इच्छा।’ पहले मन इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता क्योंकि उसे स्पष्ट रूप से गलत होता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसे में आपको ‘तेरा लक्ष्य’ तब तक प्राप्त नहीं होगा, जब तक आपको दुनिया टेढ़ी दिखती है। जबकि होती नहीं है। केवल अपनी मान्यता के कारण आप उस बात को सच मान चुके हैं। अब समझ मिलने के बाद आपको विश्वास हो जाएगा कि ‘सब तेरा है, सब सीधा है’ क्योंकि आप उस घटना को अब नए तरीके से देखेंगे- ‘यह हरिइच्छा है… इंशाअल्लाह… दाय विल बी डन… ईश्वर की इच्छा है… प्रभु की इच्छा है… ईश्वर का हुक्म है…।’ अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग शब्द आते हैं। शब्द कोई भी क्यों न हो, लक्ष्य प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। कुछ लोग इसे स्वीकार कर पाते हैं तो कुछ नहीं। जो लोग यह स्वीकार नहीं कर पाते हैं, वास्तव में उन्हें पूरा विषय समझा ही नहीं होता। जिन लोगों को हरिइच्छा पार्ट वन (किसी घटना का एक हिस्सा) और हरिइच्छा पार्टटू (पूरी घटना) के बारे में ज्ञान नहीं है, वे सही और गलत का अनुमान लगाते हैं। जब इंसान के जीवन में कोई अनचाही घटना घटती हैतब वह दुःख में रहने के कारण- ‘तुम्हें जो लगे अच्छा, वही मेरी इच्छा’ को भूल जाता है। उसे घटना का सिर्फ पहला हिस्सा ही दिखता है।इसलिए वह मन ही मन ईश्वर से शिकायत करता है कि ‘यह सब मुझे नहीं चाहिए।’तब उसे कहा जाता है- ‘तुमने हरिइच्छा पार्ट वन यानी घटना का पहला हिस्सा ही देखा है, ‘पार्टटू’ यानी घटना का दूसरा हिस्सा देखना तो अभी बाकी है। आइए, एक उदाहरण के द्वारा हरिइच्छा को और गहराई से समझते हैं। एक इंसान ने बड़े शौक से नया घर बनवाया। दूसरे ही दिन वह अपने परिवार के साथ नए घर में गृहप्रवेश करनेवाला था। मगर गृहप्रवेश करने के एक दिन पहले ही उसका नया घर ढह (टूट) गया। यह देखकर उस इंसान ने अपने सगे-संबंधियों को मिठाइयाँ बाँटी। सभी आश्चर्यचकित रह गए और कहा- ‘पागल हो गए हो क्या… तुम्हारा घर टूट गया और तुम मिठाई बाँट रहे हो?’ उस इंसान ने जो जवाब दिया, वह सभी के लिए कारगर है। उसने भेद खोला- ‘अगर एक दिन बाद मेरा नया घर गिरता तो मेरे पूरे परिवार की मृत्यु हो सकती थी। ईश्वर की यही इच्छा थी कि यह घर एक दिन पहले ही गिरे।’ इतना ही नहीं, जब दोबारा घर बनवाने के लिए खुदाई की गई तो उसे जमीन के अंदर से खज़ाना प्राप्त हुआ। उपरोक्त उदाहरण में नए घर के टूटने को हम बुरी घटना मानते हैं। लेकिन यह है हरिइच्छा ‘पार्टवन’ यानी संपूर्ण घटना का एक हिस्सा। खुदाई के दौरान खज़ाना मिलने को हम अच्छी घटना मानते हैं। इसे ही हरिइच्छा ‘पार्टटू’ कहा गया है। अकसर इंसान घटना के एक छोटे से हिस्से को देखकर घोषणा कर देता है कि ‘यह तो बुरा हुआ… ऐसा नहीं होना चाहिए था… मेरे जीवन में सब गलत हो रहा है…।’ परंतु अब नई समझ प्राप्त होने के बाद वह थोड़ा रुककर सोचेगा- ‘कहीं मै पूरी घटना को देखे बिना ही घोषणा तो नहीं कर रहा हूँ? पहले पूरी घटना को देख लूँ, उसके बाद ही निर्णय लूँगा कि यह घटना अच्छी है या बुरी!’ जैसे सामनेवाला कमर पर हाथ रखकर खड़ा हो तो मन तुरंत अनुमान लगाता है कि ‘देखो, कितना अकडू है, अहंकारी है।’ मगर आपको पूरी बात नहीं मालूम। हो सकता है उसकी पतलून ढीली हो, बेचारा पकड़कर खड़ा हो। कहने का अर्थ है आप जो भी देखते हैं तुरंत आपके मन में उसके बारे में विचार चलने लगते हैं- ‘यह सही है… यह गलत है…।’ मन का अर्थ ही है- मंथरा। वह हरदम कुछ न कुछ कहती रहती है और आप उस विचार पर विचार किए बिना ही उसकी बातों में आ जाते हैं। परंतु आपको मंथरा की बात नहीं माननी है। मंथरा ने कैकेयी को भड़काया था कि ‘तेरा’ नहीं ‘मेरा’ कहो… ‘मेरा बेटा कहो…।’ मंथरा ने जब कैकेयी के मन में यह पक्का करवाया कि ‘मेरे बेटे को राजगद्दी मिलनी चाहिए’ तब राम को वनवास मिला। यहाँ राम का अर्थ है- आनंद, खुशी। जिसे आप मन रूपी मंथरा की बातों में आकर वनवास भेज देते हैं। आप भले ही चौदह साल या चौदह महीनों के लिए वन में न जाएँ परंतु यदि आप चौदह घंटों के लिए भी दुःखी होते हैं तो समझिए मंथरा की जीत हो रही है। अतः खुद को याद दिलाएँ मंथरा को जीतने नहीं देना है।
Author: filmyblog2017
सब तेरा है, कोई टेढ़ा नहीं है
तेरा लक्ष्य पाने के लिए विश्वास की शक्ति को पहचानना ज़रूरी है। जितना बड़ा लक्ष्य आप बनाएँगे, उतना ही ज़्यादा लक्ष्य आप पर कार्य करेगा। यह कर्म नियम है। अर्थात जिस लक्ष्य पर आप काम करते हैं, कुछ समय के बाद वह लक्ष्य आप पर काम करना शुरू करता है यानी आपका विकास होने लगता है। आप जो वचनबद्धता अपने लक्ष्य के साथ रखते हैं, वही वचनबद्धता आप पर काम करने लगती है। इससे आपकी नींव मजबूत होने लगती है। बचपन में आपमें से कई लोगों ने यह प्रयोग करके देखा होगा। आपने पानी के अंदर लकड़ी डाली और वह आधी टेढ़ी हो गई मगर क्या सचमुच लकड़ी टेढ़ी हो जाती है या वैसी दिखती है? आप जानते हैं कि पानी में लकड़ी टेढ़ी दिखती है मगर होती नहीं। ठीक इसी तरह आपको संसार टेढ़ा दिखाई देता है पर वैसा है नहीं। अज्ञान और बेहोशी की वजह से इंसान को संसार टेढ़ा दिखता है। सच तो यह है कि सब सीधा है, संसार में जो भी चल रहा है वह सब सही चल रहा है। इंसान के गलत दृष्टिकोण की वजह से संसार में उसे सब कुछ नकारात्मक दिखता है। अतः यह समझ रखें कि सब टेढ़ा नहीं बल्कि सब ‘तेरा’ है। सब ‘तेरा’ समझने के लिए आपको अपने भीतर यह दृष्टिकोण तैयार करना होगा कि संसार में सब अच्छा चल रहा है, सब सही हो रहा है। जो कुछ भी गलत दिख रहा है असल में वह वैसा है नहीं। इसे ही दिखावटी सत्य, मिथ्या या भ्रम कहा गया है।
तेरा लक्ष्य
प्यारे खोजियो, आपको शुभेच्छा, हॅपी थॉट्स! इस संदेश द्वारा आज आप जानेंगे ‘तेरा लक्ष्य’। ‘तेरा लक्ष्य’ वह लक्ष्य है, जो लक्ष्य के पीछे रखा जाता है। बाहरी दुनिया में इंसान कारपेेन्टर, टीचर, वकील या डॉक्टर होता है मगर यह बनना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं है। इन सबके पीछ जो लक्ष्य छिपा है- वह है ‘तेरा लक्ष्य’ आपका लक्ष्य, सभी का लक्ष्य। ‘तेरा लक्ष्य’ जानने के लिए एक तैयारी की ज़रूरत होती है। जैसे कोई यात्रा पर जाता है तो कुछ तैयारी करके ट्रेन में बैठता है, उसी तरह ‘तेरा लक्ष्य’ जानने की यात्रा में भी कुछ चीज़ों की आवश्यकता होती हैं।
एक साधु ट्रेन से कहीं जा रहा था। तभी टिकट चेकर ने आकर साधु से पूछा, ‘कहाँ जा रहे हो?’ साधु ने जवाब दिया- ‘वहाँ, जहाँ राम का जन्म हुआ था।’ इस पर टिकट चेकर ने कहा- ‘ठीक है, टिकट दिखाओ।’ साधु ने कहा- ‘मेरे पास टिकट तो नहीं है।’ इस पर टिकट चेकर बोला, ‘फिर चलो…’। साधु ने पूछा, ‘कहाँ?’ ‘वहीं… जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था।’ इस चुटकुले से यह समझें कि हमें निश्चित कहाँ जाना है? जहाँ राम, कृष्ण या परमहंस का जन्म हुआ था या जहाँ कंस, रावण जैसे असूरों का? रामकृष्ण परमहंस बनना है तो अपने अंदर ही हंस चेतना को जगाना होगा। जिस तरह ट्रेन में बैठने के लिए टिकट का होना ज़रूरी होता है, ठीक उसी तरह तेरा लक्ष्य की यात्रा के लिए कुछ तैयारी करना ज़रूरी है। इस यात्रा में सबसे पहले शब्दों में समझना होगा ‘तेरा लक्ष्य’ क्या है? तेरा लक्ष्य जानने के लिए यह पंक्ति समझ लें- ‘सब तेरा है, कुछ भी टेढ़ा नहीं है।’ कल्पना कीजिए, यदि आपको इस पंक्ति पर विश्वास हो गया तो आपका जीवन कैसा होगा! ‘सब तेरा है’ जिसे कहा जा रहा है उसे कोई अल्लाह, कोई ईश्वर, कोई प्रभु, कोई परमहंस तो कोई परम चेतना कहता है। शब्द कोई भी कहा जाए मगर यह विश्वास आपके अंदर जगना चाहिए कि ‘सब तेरा है’। यह कहनेवाला इंसान भी तेरा हैमगर इंसान को लगता है सामनेवाला टेढ़ा है, सामनेवाले को सुधरना चाहिए
महिला सशक्तिकरण
अपनी निजी स्वतंत्रता और स्वयं के फैसले लेने के लिये महिलाओं को अधिकार देना ही महिला सशक्तिकरण है। परिवार और समाज की हदों को पीछे छोड़ने के द्वारा फैसले, अधिकार, विचार, दिमाग आदि सभी पहलुओं से महिलाओं को अधिकार देना उन्हें स्वतंत्र बनाने के लिये है। समाज में सभी क्षेत्रों में पुरुष और महिला दोनों को लिये बराबरी में लाना होगा । देश, समाज और परिवार के उज्जवल भविष्य के लिये महिला सशक्तिकरण बेहद जरुरी है। महिलाओं को स्वच्छ और उपयुक्त पर्यावरण की जरुरत है जिससे कि वो हर क्षेत्र में अपना खुद का फैसला ले सकें चाहे वो स्वयं, देश, परिवार या समाज किसी के लिये भी हो। देश को पूरी तरह से विकसित बनाने तथा विकास के लक्ष्य को पाने के लिये एक जरुरी हथियार के रुप में है महिला सशक्तिकरण।
भारतीय संविधान के प्रावधान के अनुसार, पुरुषों की तरह सभी क्षेत्रों में महिलाओं को बराबर अधिकार देने के लिये कानूनी स्थिति है। भारत में बच्चों और महिलाओं के उचित विकास के लिये इस क्षेत्र में महिला और बाल विकास विभाग अच्छे से कार्य कर रहा है। प्राचीन समय से ही भारत में महिलाएँ अग्रणी भूमिका में थी हालाँकि उन्हें हर क्षेत्र में हस्तक्षेप की इज़ाजत नहीं थी। अपने विकास और वृद्धि के लिये उन्हें हर पल मजबूत, जागरुक और चौकन्ना रहने की जरुरत है। विकास का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को समर्थ बनाना है क्योंकि एक सशक्त महिला अपने बच्चों के भविष्य को बनाने के साथ ही देश का भविष्य का सुनिश्चित करती है।
विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को लाने के लिये भारतीय सरकार के द्वारा कई योजनाओं को निरुपित किया किया गया है। पूरे देश की जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी आधे की है और महिलाओं और बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये हर क्षेत्र में इन्हें स्वतंत्रता की जरुरत है।
भारत एक प्रसिद्ध देश है जो प्राचीन समय से ही अपनी सभ्यता, संस्कृति, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा, धर्म और भौगोलिक विशेषताओं के लिये जाना जाता है। जबकि दूसरी ओर, ये अपने पुरुषवादी राष्ट्र के रुप में भी जाना जाता है। भारत में महिलाओं को पहली प्राथमिकता दी जाती है हालाँकि समाज और परिवार में उनके साथ बुरा व्यवहार भी किया जाता है। वो घरों की चारदीवारी तक ही सीमित रहती है और उनको सिर्फ पारिवारिक जिम्मेदारीयों के लिये समझा जाता है। उन्हे अपने अधिकारों और विकास से बिल्कुल अनभिज्ञ रखा जाता है। भारत के लोग इस देश को माँ का दर्जा देते है लेकिन माँ के असली अर्थ को कोई नहीं समझता ये हम सभी भारतीयों की माँ है और हमें इसकी रक्षा और ध्यान रखना चाहिये।
इस देश में आधी आबादी महिलाओं की है इसलिये देश को पूरी तरह से शक्तिशाली बनाने के लिये महिला सशक्तिकरण बहुत जरुरी है। उनके उचित वृद्धि और विकास के लिये हर क्षेत्र में स्वतंत्र होने के उनके अधिकार को समझाना महिलाओं को अधिकार देना है। महिलाएँ राष्ट्र के भविष्य के रुप में एक बच्चे को जन्म देती है इसलिये बच्चों के विकास और वृद्धि के द्वारा राष्ट्र के उज्जवल भविष्य को बनाने में वो सबसे बेहतर तरीके से योगदान दे सकती है। महिला विरोधी पुरुष की मजबूर पीड़ित होने के बजाय उन्हें सशक्त होने की जरुरत है।
Drugs affect your life
Save girl child
Save girl child
“There are only two emotions: love and fear. All positive emotions come from love, all negative emotions from fear. From love flows happiness, contentment, peace, and joy. From fear comes anger, hate, anxiety, and guilt. It’s true that there are only two primary emotions, love and fear. But it’s more accurate to say that there is only love or fear, for we cannot feel these two emotions together, at exactly the same time. They’re opposites. If we’re in fear, we are not in a place of love. When we’re in a place of love, we cannot be in a place of fear.”